mahavatar narsimha movie explain

इस रोमांचक कहानी की शुरुआत होती है दक्ष पुत्री अदिति से, जो एक धर्मनिष्ठ साधु की पत्नी थी। एक दिन जब इंद्रदेव ने मूसलाधार बारिश की, तो अदिति उस प्राकृतिक सुंदरता में खो गई। उसके मन में काम वासना जाग उठी और वह अपने पति से बार-बार गुहार लगाने लगी।

उसके धर्मपरायण पति ने समझाया कि शाम का समय पूजा-अर्चना का होता है, इस वक्त असुर और राक्षस आसमानों में विचरण करते हैं। उन्होंने कहा, "मैं तुम्हें मना नहीं कर रहा, लेकिन यह समय उचित नहीं है।" मगर अदिति ने उनकी बात नहीं मानी और दोनों के बीच अंतरंगता हो गई।

अगली सुबह जब साधु जी नदी में स्नान कर रहे थे, तो उन्हें अहसास हुआ कि कल रात जब वे दोनों साथ थे, तो आसपास असुरी शक्तियां घूम रही थीं। इसी कारण अदिति के गर्भ में दो ऐसी असुर शक्तियों ने जन्म लिया जो आगे चलकर भगवान को चुनौती देंगी, साधु-संतों का नाश करेंगी, और अपनी हाहाकार से पूरी दुनिया को हिला देंगी।

समय बीतने पर अदिति को दो पुत्र हुए - हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। ये दोनों राक्षस नक्षत्र में पैदा हुए थे, इसलिए बड़े होकर राक्षस बने। गुरु शुक्राचार्य, जो असुरों के गुरु माने जाते हैं, इन दोनों को प्रशिक्षण देने लगे।

जैसे-जैसे ये भाई बड़े हुए, उनके लंबे-लंबे दांत निकले और वे अपने आप को सर्वशक्तिमान मानने लगे। उन्हें पता चला कि भगवान विष्णु आगे चलकर उनके शत्रु बन सकते हैं। अहंकार में आकर हिरण्याक्ष ने कहा, "मैं जाकर विष्णु का सिर लाकर दूंगा।"

हिरण्याक्ष ने सबसे पहले भूदेवी यानी धरती को ही कब्जे में कर लिया और उसे समुद्र तल में छुपा दिया। जब सभी देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, तो अचानक उन्हें छींक आई और उनमें से एक वराह (सूअर) निकला।

भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर धरती को बचाने के लिए समुद्र में गोता लगाया। यहाँ हिरण्याक्ष और वराह भगवान के बीच एक शानदार युद्ध हुआ। फिल्म के VFX और CGI का स्तर यहाँ बिल्कुल Hollywood level का था! दोनों महान योद्धा थे, लेकिन अंत में वराह अवतार ने हिरण्याक्ष को परास्त कर दिया।

भाई की मौत से दुखी हिरण्यकश्यप ने विष्णु से बदला लेने का निश्चय किया। गुरु शुक्राचार्य ने समझाया कि भगवान से लड़ने के लिए भगवान जितना शक्तिशाली होना पड़ेगा। इसके लिए उसे ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करनी होगी।



जब हिरण्यकश्यप तपस्या के लिए जाने लगा, तो उसकी पत्नी कयाधु ने रोकने की कोशिश की क्योंकि वह गर्भवती थी। लेकिन हिरण्यकश्यप ने कहा, "मेरी प्रतिष्ठा और तेजस्व के बीच सिर्फ विष्णु ही बाधा है। मुझे तीनों लोकों का राजा बनना है।"

महीनों तक उसकी तपस्या चली। उसका शरीर सूख गया, जड़ों ने उसे जकड़ लिया, मिट्टी में धंस गया, लेकिन तपस्या नहीं छोड़ी। उसके तप की ऊष्मा से धरती तक जलने लगी।

अंततः ब्रह्मा जी को प्रकट होना पड़ा। उन्होंने कहा, "तुमने ऐसी तपस्या की है जो ना पहले किसी ने की, ना शायद भविष्य में कोई कर पाएगा।"

हिरण्यकश्यप ने चतुराई से वरदान मांगा: "मेरी मौत ना घर के अंदर हो ना बाहर, ना सुबह हो ना रात, ना इंसान से हो ना भगवान से, ना तुच्छ प्राणी से हो ना भीमकाय से, ना धरती पर हो ना आसमान में।" ब्रह्मा जी को यह वरदान देना पड़ा।

इधर कयाधु, जो हरि नाम के जाप में लीन रह रही थी, को एक पुत्र हुआ - प्रह्लाद। मां के पेट में भगवान की प्रार्थना सुनने के कारण प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त बनकर पैदा हुआ।

जब हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की परीक्षा ली और पूछा कि राजा कैसा होना चाहिए, तो प्रह्लाद ने कहा, "राजा को दुर्बलों की रक्षा करनी चाहिए, लोगों के कष्ट हरने चाहिए और भगवान की आराधना में विलीन होना चाहिए।"

यह सुनकर हिरण्यकश्यप को लगा कि किसी ने उसके बेटे का दिमाग भगवान के प्रति भर दिया है।

क्लास में दूसरे बच्चे प्रह्लाद का मजाक उड़ाते थे कि वह राजपुत्र होकर भगवान की प्रार्थना करता है। लेकिन प्रह्लाद कहता, "मुझे राज्य संभालने की कोई इच्छा नहीं। मुझे तो बस भगवान की आराधना करनी है क्योंकि मुझे हर जगह सिर्फ भगवान विष्णु ही दिखाई देते हैं।"

एक बार जब प्रह्लाद ने दूसरे बच्चे को जहरीले कीड़े से बचाया, तो सभी उसकी शक्ति और दयालुता देखकर उसके साथ "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप करने लगे।

जब यह बात हिरण्यकश्यप को पता चली, तो उसने भरी सभा में प्रह्लाद को लात मारकर मौत का फरमान सुना दिया। कयाधु ने रोकने की कोशिश की - "वह सिर्फ 5 साल का बच्चा है!" - लेकिन हिरण्यकश्यप नहीं माना।

पहले सैनिकों ने भालों से मारने की कोशिश की, लेकिन भाले टूट गए। फिर पागल हाथियों के बीच फेंका गया, लेकिन हाथी उसके सामने नतमस्तक हो गए। कालकोठरी में बंद किया गया जहाँ ना खाना था ना पानी, फिर भी भगवान विष्णु उसकी रक्षा करते रहे।



अंत में उसे ऊंची पहाड़ी से फेंकने का आदेश दिया गया। रास्ते में प्रह्लाद ने सैनिकों से कहा, "आप इतनी मेहनत मत कीजिए, मैं खुद कूद जाऊंगा।" सैनिकों का दिल पसीज गया कि यह बच्चा मरने जा रहा है फिर भी हमारी चिंता कर रहा है।

जब उसे फेंका गया, तो भगवान ने फूलों की चादर बिछा दी और उसकी जान बच गई।

हताश होकर हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका के पास गया। होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जला सकती। उन्होंने योजना बनाई कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता में बैठेगी।

लेकिन जब प्रह्लाद ने "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप किया, तो उसके शरीर से निकलने वाला दिव्य तेज इतना प्रबल था कि होलिका जलकर भस्म हो गई। उसका वरदान सिर्फ बाहरी आग से बचाव के लिए था, अंदरी दिव्य तेज से नहीं।

यही कारण है कि आज भी हम होली जलाकर इस विजय का जश्न मनाते हैं।

गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को दरबार में बुलाया और पूछा, "क्या तेरा भगवान यहाँ खड़ा है?"

प्रह्लाद ने निर्भीकता से कहा, "हाँ, वे हर चीज में मौजूद हैं - इस खंभे में भी।"

"क्या इस खंभे में तेरे विष्णु जी हैं?" हिरण्यकश्यप ने व्यंग्य से पूछा।

यह उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी। जैसे ही उसने गदा से स्तंभ तोड़ना शुरू किया, वहाँ से प्रकट हुए स्वयं भगवान विष्णु नरसिम्हा अवतार में - आधे इंसान, आधे शेर।

फिल्म का सबसे शानदार हिस्सा यहाँ आता है! पूरा budget इस epic fight में लगाया गया लगता है। अष्टभुजाधारी नरसिम्हा और हिरण्यकश्यप के बीच भयंकर युद्ध हुआ। हिरण्यकश्यप ने अपना सुनहरा कवच भी उतारा और पूरी शक्ति से लड़ा, लेकिन भगवान के सामने उसकी एक न चली।

भागकर जंगल में छुपने के बाद भी उसे हर जगह नरसिम्हा के दर्शन होने लगे। अंत में उसने अपना आकार ब्रह्मांड से भी बड़ा कर लिया, लेकिन भगवान के सामने वह चींटी के बराबर था।

नरसिम्हा ने हिरण्यकश्यप को दरवाजे की चौखट पर अपनी जांघों पर लिटाया और कहा:

"तूने कहा था ना घर के अंदर मरेगा ना बाहर - देख, यह चौखट है। ना दिन में मरेगा ना रात में - यह शाम का समय है। ना इंसान से मरेगा ना देवता से - मैं आधा इंसान आधा पशु हूँ। ना धरती पर मरेगा ना आसमान में - तू मेरी जांघों पर है। ना अस्त्र से मरेगा ना शस्त्र से - ये मेरे नाखून हैं जो ना सजीव हैं ना निर्जीव।"




इसके बाद नरसिम्हा ने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ दिया और इस अत्याचारी का अंत हो गया।

युद्ध के बाद भी नरसिम्हा का क्रोध शांत नहीं हुआ था। वे हर चीज को तोड़ने-फोड़ने लगे। देवताओं ने ब्रह्मा जी से सलाह ली तो उन्होंने कहा, "यह सब प्रह्लाद की वजह से हुआ है, अब प्रह्लाद ही उन्हें शांत कर सकता है।"

प्रह्लाद ने जाकर हाथ जोड़े, "प्रभु, शांत हो जाइए।" नरसिम्हा भगवान ने उसे अपनी गोद में बिठाया, प्यार से सहलाया, और उनका क्रोध शांत हो गया।

दोस्तों, इस महा अवतार नरसिम्हा की गाथा सिर्फ एक धार्मिक कहानी नहीं है। यह हमें सिखाती है कि अहंकार और अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली हो, सच्ची भक्ति और धर्म के सामने टिक नहीं सकता।

प्रह्लाद का चरित्र दिखाता है कि निष्कपट भक्ति में इतनी शक्ति होती है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी भगवान अपने भक्त की रक्षा करते हैं। हिरण्यकश्यप का किरदार बताता है कि वरदान पाकर भी अगर मन में अहंकार और द्वेष है तो विनाश निश्चित है।

यह फिल्म हमारी भारतीय animation industry के लिए एक milestone है। जिस तरह से mythological stories को modern technology के साथ present किया गया है, वह वाकई प्रशंसनीय है।

आज के जमाने में जब बच्चे Hollywood movies देखते हैं, तो इस तरह की quality वाली Indian animated films उन्हें अपनी संस्कृति और मूल्यों से जोड़े रखने में मदद करती हैं। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि भक्ति, विनम्रता और सच्चाई की हमेशा जीत होती है, चाहे सामने कितनी भी बड़ी शक्ति खड़ी हो।

भगवान नरसिम्हा का यह अवतार सिखाता है कि जब भी धर्म पर आंच आती है, तो प्रभु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर अधर्म का नाश कर देते हैं। और सबसे खूबसूरत बात यह है कि भक्त प्रह्लाद की निष्कपट आस्था ने दिखाया कि प्रेम और भक्ति में इतनी ताकत होती है कि भगवान के क्रोध को भी शांत कर सकती है।